।।लेकिन।।
यूँही निकला मैं सैर पर आज और ,
न जाने क्यों ,मुझे हर वो लम्हा..
फिर याद आने लगा...
जिसमे, थम के रह गयी तुम कही ,
जिसमे, थम के रह गयी तुम कही ,
जिसमे, उलझकर रह गया मैं कही .
गुज़र तो रही है ज़िन्दगी....लेकिन ....
गुज़र तो रही है ज़िन्दगी....लेकिन ....
अब इसमें वो बात नहीं
……………….
आहटों को तुम्हारी मैं जान लेता था ,
आहटों को तुम्हारी मैं जान लेता था ,
हवा में बिखरी खुशबूं से पहचान लेता था ,
मेरा अक्स दिखाई देता था , तेरी आँखों की गहराई में
चुपचाप बेबस रोता हूँ , अब मैं अपनी तन्हाई में।
काश लौट आती वो बारिश , भीगे थे जिसमे हम -तुम कभी ...
मेरा अक्स दिखाई देता था , तेरी आँखों की गहराई में
चुपचाप बेबस रोता हूँ , अब मैं अपनी तन्हाई में।
काश लौट आती वो बारिश , भीगे थे जिसमे हम -तुम कभी ...
गुज़र तो रही है ज़िन्दगी....लेकिन ....
अब इसमें वो बात नहीं
………………
………………
अब भी समेट रहा हूँ , टुकड़े जो बिखेर गयी तुम ,
आज भी सोचता हूँ क्यों मूह फेर गयी तुम ?
ये लहू की छीटे है ,
आज भी सोचता हूँ क्यों मूह फेर गयी तुम ?
ये लहू की छीटे है ,
जल्द छूटेगी नहीं।
हाँ ... गुज़र तो रही है ज़िन्दगी..... लेकिन ....
अब इसमें वो बात नहीं ।।।
~ सौम्या