हाँ यह सच है , तुम पुकारते तो भी न सुनती मैं ,
तुम रोकते तो भी न रूकती मैं
तुम बुलाते तो भी न आती मैं। ।
पर काश पुकारा होता,काश रोकते , काश बुलाते
पता नहीं शायद …… शायद मैं रुक जाती, शायद मैं ना जाती
मगर यह हो न सका ….और अब यह आलम है कि -
तुम रोकते तो भी न रूकती मैं
तुम बुलाते तो भी न आती मैं। ।
पर काश पुकारा होता,काश रोकते , काश बुलाते
पता नहीं शायद …… शायद मैं रुक जाती, शायद मैं ना जाती
मगर यह हो न सका ….और अब यह आलम है कि -
तू नहीं ,तेरा गम, तेरी जुस्तुजू भी नहीं
गुजर रही है ज़िन्दगी ऐसे,जैसे
इसे किसी के सहारे की आरज़ू भी नहीं।