हर पल घटते हुये ,उसके तेज को देखा है ...
मैंने आती हुई बयारों में ,
उड़ते धूल के बादलो को देखा है ...
आस पास फैले उजाले को,
धीरे- धीरे परिवर्तित होते , अँधेरे में देखा है..
मैंने अरुण की हर किरण पर सवार, आशाओं को..
बादलों के .. , सायो में छुपते देखा है....
मैंने डूबते सूरज को देखा है ....
कष्टों और कंटको में,
मैंने पल्लवित जीवन को देखा है...
अंतर्मुखी लोगों के,
बाह्यी स्वरुप को देखा है....
अपनत्व के सायों में ,
दब चुकी भावनाओं को देखा है...
मैंने डूबते सूरज को देखा है ....
प्रखरता को प्रलोभन बनते,
और विश्वास के दमन को देखा है...
शीर्ष पर सिंघासित देव की,
खंडित प्रतिमा को देखा है...
मैंने उड़ते हुए खग का ,
शिकार होते देखा है....
मैंने डूबते सूरज को देखा है ....
मैंने मूल्यहीन बातों के ,
उलझते हुए जालों को देखा है...
मैंने अवसरवादी अपनों को...
संघर्षपूर्ण सपनो को....
लोगों के अस्तित्व को मिटते हुए....
उम्र को सिमटते हुए....
विलोमित हुए अर्थो को देखा है....
मैंने डूबते सूरज को देखा है ...
~ सौम्या