एक रोज़ मैं तड़पकर इस दिल को थाम लूंगी ...
ज़िन्दगी की तेज़ हवाओं में कई पल बह गए ...
और मैं चुपचाप खड़े देखती रही ..........
खोई हुई हूँ इस कदर,
मैं अपनी ही बनायी दुनिया में
की अजनबी लगता है हर शख्स।।। हकीकत में ,
की अजनबी लगता है हर शख्स।।। हकीकत में ,
अनजान लगती है हर डगर हर दिन।।।।।।
क्यों है,क्या है ...सवालों में गुम हूँ कहीं।।।
मैं इतनी दूर हूँ।।।फिर भी ...... पीर पहाड़ सी है
आज भी ..
आज भी ..
खुद से भागती हूँ या औरो से छिपती हूँ, नहीं पता मुझे
बहुत मुश्किलों के बाद तैरना सीखा ..
फिर एक ही पल में एक धक्का ...
और मैं डूब जाती हूँ फिर उन्ही गहराईयों में
जिनसे तैर करके ऊपर आई थी।।।
कब तक ............
आदत बन चुका है अब , आँखों में पानी भी ..
आँखों की नमी से ये अहसास होता है,
की अभी भी जिंदा हूँ मैं
और पहाड़ जैसी ज़िन्दगी काटनी है ,
अभी भी।।
अभी भी।।
भाग के कहाँ जाउंगी ..
तेरे सायों से कैसे भाग पाऊँगी
टूटके या भिखरके ....
जिंदा तो रहना है ..
अपनी हर हार को,
तेरी हर जीत को,
हँस के सहना है .......
~ सौम्या