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Thursday, 21 February 2013

inn dino...

है पथ धुमिल ,लोचन निराश ..
सोच  विचलित,कंपित ह्रदय …

है धीर धीर अधीर मन।
भर गया  है पीर पीर जीवन ..
निर्जीव है स्पृहा
नीर 
नयनो से बहा ..
व्याकुलता हरी भरी है,
क्लेशो  की झरी लगी है।
भावो का कर परित्याग,
परछाई से रहे भाग।
हो गए सम्बन्ध पानी ,
मध्य शेष हो गयी कहानी ......
परिचित सब अपरिचित
घुल गए औचित्य।
कष्ट सभी सारे ,
बन समुद्र पघ पखारे ..
शोर मन में अपार ,
आशाएं मर गयी  हार ..

उजड़ गए बाग़-बगीचे  ,
खड़े रहे 
वो आँखें मीचे ।
कर रहा मन विलाप,
उलझ गए पुण्य-पाप।

सभी फीके है रंग  ,
हुई है माया भंग   ...
समझे कैसे, सार-सार ?
अन्धकार है प्रगाढ़।।



~ सौम्या