जीवन के इस मोड़ पर आकर ,मेरा कल मुझसे पूछ पड़ा
क्या करते करते तुमने मुझे यूँ बर्बाद कर दिया ?
मैं हँस कर बोली- क्या हुआ तुम्हे? तुम्हारा ज़मीर क्यों जाग उठा ?
वो बोला- नही ज़मीर तो जगा ही था मेरा , मैं तो बस चुपचाप देख रहा था तुम्हे।।
देख रहा की तुम्हारे सब्र की था क्या है ?
देख रहा था की सिले होटो के बीच जुबां कहा है ?
मैं सोच रहा था की तुम होश में खुद आ जाओगी,
अपनी उजाड़ी ज़िन्दगी फिरसे सजाओगी
मैं फिर हँस पड़ी.…… कल थोड़ा झेपा
वो बोला-
अरे तुम्हे कोई एहसास-इ-जुर्म नहीं होता ?
तुम मेरी गुनेहगार हो , शर्म नहीं आती ?
इतनी बे हिस कैसे हो गयी तुम…??
तुम तो ऐसी हो नहीं … तुम्हे तो बात-बेबात तकलीफ़ दे ही जाती है।
तुम तो ऐसी हो नहीं … तुम्हे तो बात-बेबात तकलीफ़ दे ही जाती है।
मैं बोली-
सुन ………तू मत रो… तू तो गुज़र गया है
मेरा आज भी मुझसे ख़फ़ा है और मेरा आनेवाला कल भी शिकायत लिए खड़ा है
मैंने कोशिश की ,नकायाबी ने मुँह के बल गिरा दिया
मेरी वफ़ा का सबने बेवफाई करके सिला दिया..
मेरे तो कल-आज-कल तीनो शिकायतों में सिमट गए
मैंने इतने गुनाह किये है की अब सारे एहसास मिट गए।
कल बोला-
तुम बदली तो ज़रूर पर अपने लिए कुछ कर नहीं पायी
तुम लड़ी तो ज़रूर पर कुछ जीत नहीं पायी।
तुमने बेफुज़ूल बातों को मुद्दा बना लिया
अपने कल-आज-कल को तुमने खुद ही जला लिया।।।।
- सौम्या