मेरा तुम में बढ़ता अविश्वास मुझे इस मोड़ पर ले आया
की मुझे खुद से ही घृणा होना लगी है
मैं तुम्हारे अस्तित्व को प्रश्न का विषय बना दिया
और आज मेरा अस्तित्व ही मिटने की कगार पे आ खड़ा है
तुम्हे खोकर जाना की तुम्हारे होने का मतलब क्या था
मैं भटक भटक कर थक गयी हूँ
मैं अकेले रास्तों पे चल चलके थक गयी हूँ
मेरा मन उदास है
मेरा चित्त परेशान
मैंने जितना तेरी बसाई दुनिया को जाना ,
मैं खुद को इसके प्रतिकूल पाया
मैं और भटकना नहीं चाहती
मेरा जी घबराने लगा है
मुझे पछतावा अंदर- अंदर खाने लगा है
मैं दर से भटककर दूर चली आई हूँ
मुझे वापस बुला लो
मैं डूब जाउंगी आंसुओं की धार में
खो गयी हूँ मैं मोह माया से लिप्त संसार में
मुझे तुम्हारी आस है
एक तुम हो जिसे पाकर यह व्यथा शांत हो पायेगी
एक तुम ही जिसके साथ से ये ज़िन्दगी काट पाऊँगी
मैं जीने की कोई चाह नहीं रखती
बस तुमसे कहना चाहती हूँ मैं शर्मिंदा हूँ
हो सके मुझे माफ़ कर देना
~ सौम्या
~ सौम्या