हर रोज़ मरते थे उसकी खातिर
अब औरो पर लुटना -लुटाना छोड़ दिया
हर बात में ज़िक्र उसी का था
लेकन अब बातें बनाना छोड़ दिया
हर पल उम्मीद थी उसके आने की
अब दिल को बहलाना छोड़ दिया
सपनो में एक ही सूरत थी
अब पलके झपकाना छोड़ दिया
मिलने की सिर्फ उसी से चाहत थी
अब कही आना-जाना छोड़ दिया
शक से देखा था सबने हमको
अब सबको समझाना छोड़ दिया
बहती थी आँखों से अविरल ही बूंदे
अब रोना-रुलाना छोड़ दिया ॥
~ सौम्या