Journey

It's not WHAT you see but HOW you see it - understand the difference !!

Monday, 3 August 2015

Chup rahe..........

Tumko pukara maine
Tum chup rahe...
Mud mudke dekha maine
Tum chup rahe..
Paas bulaya maine
Tum chup rahe...
Haath badhaya maine ,
Tum chup rahe...
Har raaz bataya maine
Tum chup rahe...




Baaton bebaaton mein
Din mein aur raaton mein
Tumko maanga maine 
Tum chup rahe...
Rokar, haskar
Tootkar, bhikarkar
Tumko hi chaaha maine 
Tum chup rahe




Jab dard dikhaya 
Tum chup rahe.......
Haarkar haath chudaaya
Tum chup rahe......
Hak jataya maine
Tum chup rahe.....

Aah badhti rahi
Chaah ghatti rahi
Khwaab saare lut gaye 
Ehsaas saare mit gaye
Par Tum chup rahe.......

Zindagi reth si phisal gayi
Ummeed saari shaamsi dhal gayi
Tum chup rahe.....
Tum chup rahe.....
Bas chup rahe.....


~ M.e.D

Saturday, 25 July 2015

CLEAR SKIES:


 I see her standing in the crowd,
Trying to be strong, longing for no one   
Her eyes are green etched with sadness
She did not want to be like the rest
But in the end she blended not for her best.
Looking at the mirror, she sees someone else
She ponders and wonders,
What joy it would be to be someone else
I see the beauty shining from her soul,
To me she is flawless,
For herself she wants wonders
To the world-she is lost.
I wonder if she can see,
The reflections of her eyes,
Without any disguise it will show
What is already in her life!
The harder that she tried
The uglier the world became.
Looking at herself
With no strength left to gained
She childishly decided,
To let life pass her by
Yet, i see her trying,
With no help in her life
Though the road may be far,
With promises to keep
She stands tall against the wind.
To my delight,
At the end of the journey
I finally see her again,
This time she was herself,
Without a doubt
She did not even have to try’
This time around
I saw her for who she really can be
All alone but strong,
Her eyes are blue like the sky
In the end;
She did stand out among the crowd!

 ~ Lari Katie  


Note -This poem was written by a friend based on her observation of me.

Friday, 27 March 2015

Alvida...

इन एहसासों को अब मिट जाना होगा
क्योंकि यह मेरी रूह को कचोटते हैं
दर्द बढ़ता ही रहेगा गर इसे खुदसे अलग नही किया तो
हाँ नासमझ थी  जो वक़्त के बदलने का। .
दिल के संभलने का इंतज़ार करती रही मैं
तुम नहीं बदले पर मैं बदल गयी हूँ.
तुम्हे पाने की खातिर खुदको नहीं खोना मुझे
बहुत बेहिस थे तुम पर अब और रुस्वा होना नही मुझे.



Monday, 16 March 2015

Ae zindagi gale laga le

ऐ ज़िन्दगी यूं तो मुझे तुझसे कोई गिला नहीं  है
फिर भी तू मुझसे इतनी खफा खफा क्यों है

हर एक दिन गुज़रता है एक सदी की तरह
एहसास बह रहे है मन में नदी की तरह

कही डूब ना जाए हम संभलते संभलते
पाँव थक रहे है अब चलते चलते

यह किस वीराने में ला खड़ी है ज़िन्दगी
क्यों इतनी रूठी रूठी, खफा है ज़िन्दगी

खुशियाँ ले रही उबासियां जबसे
दस्तक दे रही उदासियाँ तबसे

घाव भर नहीं रहे,गहरा गए है
वो आने का कहके चौखट पे हमको ठहरा गए है

जाने किस फ़िराक में गमज़दा है ज़िन्दगी
एक अरसा बीता, फिर भी। …
न जाएं क्यों आज  भी हमसे खफा है ज़िन्दगी

~ सौम्या


Saturday, 21 February 2015

एहसास


मेरा  तुम  में बढ़ता अविश्वास मुझे इस मोड़ पर ले आया 
की मुझे खुद से ही घृणा होना लगी है 
मैं तुम्हारे अस्तित्व को  प्रश्न का विषय बना दिया 
और आज मेरा अस्तित्व ही मिटने की कगार पे आ खड़ा है 
 तुम्हे खोकर जाना की तुम्हारे होने का  मतलब क्या था 
मैं भटक भटक कर थक गयी हूँ 
मैं अकेले रास्तों पे चल चलके  थक गयी हूँ 

मेरा मन उदास है 
मेरा चित्त परेशान 
मैंने जितना तेरी बसाई दुनिया को जाना   , 
मैं खुद को इसके प्रतिकूल पाया 
मैं और भटकना नहीं चाहती 
मेरा जी घबराने लगा है 
मुझे पछतावा अंदर- अंदर खाने लगा है 

मैं दर से भटककर दूर चली आई हूँ 
मुझे वापस बुला लो 
मैं डूब जाउंगी आंसुओं  की  धार में 
खो गयी हूँ मैं मोह माया से लिप्त संसार में 

मुझे तुम्हारी आस है 
एक तुम हो जिसे पाकर यह व्यथा शांत हो पायेगी 
एक तुम ही जिसके साथ से  ये ज़िन्दगी काट पाऊँगी 
मैं जीने की कोई चाह नहीं रखती 
बस तुमसे कहना चाहती हूँ मैं शर्मिंदा हूँ 
हो सके  मुझे माफ़ कर देना


~ सौम्या 

Thursday, 5 February 2015

छोड़ दिया ...

हर रोज़ मरते थे उसकी खातिर 
अब औरो पर लुटना -लुटाना छोड़ दिया 
हर बात में ज़िक्र उसी का था 
लेकन अब बातें  बनाना छोड़ दिया 
हर पल उम्मीद थी उसके आने की 
अब दिल को बहलाना छोड़ दिया 
सपनो में एक ही सूरत थी 
अब पलके झपकाना छोड़ दिया
मिलने की सिर्फ उसी से चाहत थी 
अब कही आना-जाना छोड़ दिया 
शक से देखा था सबने हमको 
अब सबको  समझाना छोड़ दिया
बहती थी आँखों से अविरल ही बूंदे 
अब रोना-रुलाना छोड़ दिया ॥ 

~ सौम्या 

Sunday, 18 January 2015

Waada...

जब अपनी ही बातें दोहराने लगो
जब  सन्नाटो से घबराने लगो
जब दिल की उदासी का कोई हल न हो
जब बेचैनी से भरा हर पल हो

जब साथ देने वाला कोई न हो
जब बात सुनने वाला कोई न हो
जब दोस्त सब साथ छोड़ जाए
जब हर रिश्ता ठगता नज़र आये

जब शर्मिंदगी दम घोटने लगे
जब पछतावा कचोटने लगे
जब एहसास ज़िंदा हो जाये
जब पत्थर ये पिघल  जाये ... तब

तब... हाँ तब ....  "मैं " याद आउंगी
पर जो वादा किया था,
मरते  दम तक निभाऊंगी,
अब लौट के फ़िर तेरी चौखट  ना आउंगी ॥


~ सौम्या